हार कर भी जीत गई दीपा कर्माकर
14 अगस्त की रात पूरा हिंदुस्तान एक होकर युवा जिमनास्ट दीपा करमाकर को देख रहा था. आज से पहले शायद लोगों को दीपा करमाकर के बारे में पता भी नहीं था. लेकिन एक रात में पूरा हिंदुस्तान एक होकर युवा दीपा का खेल देख रहा था. क्रिकेट के पीछे तो हमेशा से ऐसा जूनून देखा है. लेकिन जिमनास्ट दीपा ने देश बदल दिया.
रियो ओलिंपिक एरेना में देश की निगाहें जिम्नास्टिक्स के वॉल्ट फाइनल मुकाबलों पर लगी रहीं, लेकिन भारत की दीपा करमाकर फाइनल में मामूली अंतर से मेडल जीतने से चूक गईं. उनका औसत स्कोर 15.066 रहा. लेकिन हार कर भी जीत गई दीपा. इसे आप चाहें तो राजनीतिक और सामाजिक सुधार माने या कुछ और एक लड़की जो त्रिपुरा जैसे राज्य से आती है पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व कर करती है और उसका परिवार भी बेहद गरीब है लेकिन वो ओलंपिक में दुनिया भर की जानी मानी एथलीट्स के सामने अपने हुनर के झंडे गाड़ देती है.
संघर्ष की कहानी
दीपा ने 2007 में जलाईपाईगुड़ी में जूनियर नेशनल प्रतियोगिता जीती. दीपा करमाकर ने जब पहली बार जिमनास्टिक प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था तब उनके पास न जूते थे और न ही प्रतियोगिता में पहनने के लिए कॉस्ट्यूम था. दीपा ने जो उधार का कॉस्ट्यूम लिया था, वह उन पर पूरी तरह से फ़िट भी नहीं हो रहा था.
स्पोर्ट्स अथॉरिटी ने कर दिया था खारिज
स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने दीपा को यह कहते हुए अस्वीकृत कर दिया कि वो कभी जिमनास्ट नहीं बन सकती क्योंकि वो फ्लैट फीट के साथ पैदा हुई हैं. दीपा हर पदक की जीत के साथ खुद को मजबूत बनाती गई.' बता दें कि फ्लैट फीट वह अवस्था होती है जब पैर की चाप सामान्य से कम होती है.
दीपा की कहानी
जब दीपा के पिता जिमनास्टिक सिखाने के लिए उसे लेकर कोच के पास पहुंचे तो उन्हें उसमें एक्स्ट्रा टैलेंट नहीं नजर आया. दीपा का फ्लैट फुट देखकर कोच ने कहा कि जिमनास्टिक उसके लिए मुश्किल होगी. फ्लैट फुट वाले जिमनास्ट सामान्य अप्रेटस जंप करने में कठिनाई महसूस करते हैं. लेकिन दीपा अपनी धुन में थी. उसने प्रैक्टिस करना जारी रखा. बेकार पड़े स्कूटर के पुर्जों की मदद से बने उपकरणों पर उसने अपनी प्रतिभा को निखारना जारी रखा.
एक और परीक्षा देनी है दीपा को
दीपा के पिता दुलाल करमाकर ने बताया कि रियो से लौटकर उन्हें राजनीतिक विज्ञान में परास्नातक की परीक्षा देनी है. दीपा अपने पापा से कह कर गईं है कि उनके लिए नोट्स इकट्ठा कर के रखें. पिता ने बताया कि बहुत कुछ बदल जाने के बाद भी दीपा का फोकस नहीं बदला. 52 वर्ष बाद जिम्नास्टिक्स में देश की ओर से ओलिंपिक में भाग ले रहीं दीपा करमाकर ने अपने प्रदर्शन से अरबों देशवासियों को आंदोलित किया है. फाइनल में पहुंचने का इतिहास रचने से पहले उन्होंने ओलिंपिक टेस्ट इवेंट में क्वालिफाई करके जिम्नास्टिक स्पर्धा में पहली भारतीय महिला एथलीट के तौर पर प्रवेश कर एक नया इतिहास रचा था.
जिम्नास्टिक आसान नहीं होता है. हमारे देश में विदेशी कोच नहीं है. दीपा हमेशा ये कहती आई है कि अपने कोच और साई के प्रयासों से यह हासिल कर पाई. दीपा ने कभी भी विदेशों में अभ्यास नहीं किया. लेकिन फिर भी दीपा ने पूरे देश में अपने नाम का डंका बजाय है.
दीपा ने अपने पहले ओलंपिक में ही वॉल्ट के फाइनल में जगह बनाकर इतिहास रचा है और अब फाइनल में हिस्सा लेने वाली आठ दिग्गजों के बीच वो चौथे स्थान पर रहीं. यह उनके और भारतीय जिम्नास्टों के लिए महान सफलता है.
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