पहाड़ की नारी
पहाड़ का जीवन कठिन और परिश्रम से भरा होता है, पहाडी जीवन मैं महिलाओ की अहम भूमिका हैं, कठिन और परिश्रम से भरे जीवन मैं महिलाओं की हिम्मत सर्वोपरि है, पहाड़ी महिलाओं के कठिन जीवन पर कई कवितायेँ है उन्ही मैं एक कविता कुसुमलता भुपाल सिंह गुंसाई जी की कलम से -
'वामा में देखो हिम्मत बडी है'
कपाल पर कसकर मुण्डेसू बंधा है,
कमर को उसने पटुखे से तना है।
बरमण्ड में पीड़ा..... पीठ में चमाक,
सर्द गर्म से वह हुई है निढाल।
फिर भी न बैठी......न बिस्तर पर पड़ी है,
फजर से ही अपने काज में लगी है।
पहाडों के आखण्ड्य एकान्तवास में,
जीवन की यही तो सशक्त कड़ी है।
वामा में देखो हिम्मत बडी है।
रसोई के काम को झटपट निपटाकर,
कलच्वाणि और पीण्डो - गोरू को खिलाकर।
लैन्दी गौड़ी को छन्नी में दुहने के बाद,
नीनो पेट चल दी..... निरपाणी के डांड।
घास के पुलिन्दे, कच्ची लकड़ी के गट्ठर,
चौक में रख कर......भागी पुगड्यूं सरासर।
पहाडों की दुष्कर विषम दिनचर्या में,
कर्मवीरता की यही तो छवि है।
वामा में देखो हिम्मत बड़ी है।
श्रृंगार सज्जा की न रहती खबर है,
अपनी मौ की बरकत....घर की चिन्ता सगर है।
धान सट्टी, नून तेल, खर्च पाणी का इन्तज़ाम,
दैवतों की पूजा पाठ.....कुटुम्ब सुख है प्रधान।
श्रम त्याग चिन्ता दुख.....से जीवन परिपूर्ण है,
बेटुले की धीरता का प्रखर ही स्वरूप है।
पहाड़ों के अश्रान्त प्रकृष्ट प्रगमन में,
आलम्ब की एक यही तो गढ़ी है।
वामा में देखो हिम्मत बड़ी है।
कविता - कुसुमलता भुपाल सिंह गुंसाई
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