नंदादेवी मंदिर, नौटी, चमोली
(Nanda Devi Temple, Chamoli)
नंदा देवी समूचे गढ़वाल और कुमाऊं तथा उत्तराखंड के अन्य भागों के जन मानस की लोकप्रिय देवी हैं। नंदा की उपासना प्राचीन काल से ही किये जाने के प्रमाण धार्मिक ग्रंथों, उपनिषदों , दुर्गा सप्तसती और पुराणों में मिलते हैं। रूप मंडन ग्रन्थ में पार्वती को माँ गौरी के छ: रुपों में एक बताया गया है। भगवती की 6 अंगभूता शक्तियों में नंदा भी एक है। नंदा को नवदुर्गाओं में से भी एक बताया गया है। भविष्य पुराण में जिन दुर्गा के स्वरूपों का उल्लेख है उनमें महालक्ष्मी, नंदा, क्षेमकरी, शिवदूती, महाटूँडा, भ्रामरी, चंद्रमंडला, रेवती और हरसिद्धी हैं। शिवपुराण में वर्णित नंदा तीर्थ वास्तव में कूर्माचल ( कुमाऊं ) ही है। शक्ति के रूप में नंदा ही सारे हिमालय में पूजित हैं। नंदा के इस शक्ति रूप की पूजा गढ़वाल में करुली, कसोली, नरोना, हिंडोली, तल्ली दसोली, सिमली, तल्ली धूरी, नौटी, चांदपुर, गैड़लोहवा , भगोती , कुलसारी , कोटि आदि स्थानों में होती है। गढ़वाल में राज जात यात्रा का आयोजन भी नंदा के सम्मान में होता है। यह यात्रा माँ नंदा को मायके से ससुराल विदा करने की यात्रा है, जिसका पहला पड़ाव नौटी से शुरू होता है नंदादेवी की यह ऐतिहासिक यात्रा चमोली जनपद के नौटी गांव से शुरू होती है। जहाँ पवार वंश के पुरोहित नौटियाल लोग रहते है। नौटियाल ब्राह्मण नौटी में भगवती नंदा की पूजा करते है और यात्रा की शुरुवात करते है। यह यात्रा नौटी से पैदल रहस्यमयी रूपकुंड होकर होमकुंड तक जाती है,
कुमाऊं क्षेत्र के उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले के पवित्र स्थलों में से एक “नंदा देवी मंदिर” का विशेष धार्मिक महत्व है। इस मंदिर में देवी दुर्गा का अवतार विराजमान है। यह समुद्रतल से 7816 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर चंद वंश की ईष्ट देवी माँ नंदा देवी को समर्पित है। नंदा देवी माँ गढ़वाल एवं कुमाऊं की मुख्य देवी के रूप में पूजी जाती है। नंदा देवी गढ़वाल के राजा दक्षप्रजापति की पुत्री है, इसीलिए इन्हें पर्वतांचल की पुत्री भी कहा जाता है। माँ नंदा देवी मंदिर की उत्तराखंड में इतनी विषेशता इस कारण भी है, क्योंकि नंदा देवी को “बुराई के विनाशक” और "कुमुण के घुमन्तु" का रूप माना जाता है। इसका इतिहास 1000 साल से भी अधिक पुराना है।
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